SHARDIYA NAVRATRA 2025 | GHAT STHAPANA KI SARAL VIDHI
By Pandit Mukesh Shastri on 1 January 1970

शारदीय नवरात्रा 2025 | घट स्थापना एवं पूजा की सरल विधि जानिए राज ज्योतिषी पंडित मुकेश शास्त्री से
नवरात्रि के पहले दिन यानि प्रतिपदा तिथि पर घट स्थापना की जाती है
प्रतिपदा तिथि को सुबह जल्दी उठकर स्नान एवं नित्यकर्म से निवृत्त हों कर अपने पूजा स्थान पर सबसे पहले घट स्थापना करे ।
सर्वप्रथम स्नान कर गाय के गोबर से पूजा स्थल का लेपन करें या गंगाजल मिले शुद्ध पानी से अपने पूजा घर की साफ़ सफाई करे.
अब आप पूर्वाभिमुख होकर किसी गर्म आसन पर बैठ कर घट स्थापना के लिए पवित्र मिट्टी से वेदी का निर्माण करें,
फिर उसमें जौ और सात प्रकार के अनाज – इन सबको को मिलाकर बोये ।
उसी वेदी के मध्य सोने, चाँदी, ताँबे या मिट्टीके कलशको विधि पूर्वक स्थापित कर दे .
इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बोये जाते हैं जिन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है
"जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नमोस्तुते ".
इसी मंत्र जाप से साधक के परिवार को सुख, सम्पत्ति एवं आरोग्य का आर्शीवाद प्राप्त होता है.
कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है. इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है.
कलश लेकर उसमे पूर्ण रूप से जल एवं गंगाजल भर दे
साथ में एक सुपारी , कुछ सिक्के, दूब, हल्दी की एक गांठ कलश मे डाल डालकर दे .
अब आप कलश के मुख पर एक नारियल जटा वाला लेकर उसको को लाल वस्त्र/चुनरी से लपेट कलश के ऊपर रख दे.
नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है
नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं,
नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे।
ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।
कलश के चारो तरफ पञ्च पल्लव अर्थात अशोक वृक्ष या आम के पाँच पत्ते लगा दे
..अब आप एक चोकी या बजोट पर लाल वस्त्र बीचा कर उस पर चावल यानि अक्षत से अष्टदल बनाकर उस पर माँ दुर्गा की, या आपके कुलदेवी की तस्वीर को स्थापित कर दे .
देवी प्रतिमा स्थापित करके उनके दोनों तरफ यानी दायीं ओर देवी महालक्ष्मी, गणेश और विजया नामक योगिनी की प्रतिमा को स्थापित करे
और बायीं ओर कार्तिकेय, देवी महासरस्वती और जया नामक योगिनी की प्रतिमा की स्थापना करे .
घट स्थापना के साथ अखंड दीपक की स्थापना करे
पूजा के समय घी का दीपक जलाएं तथा उसका गंध, चावल, व फूल से पूजा करें।
सबसे पहले देवी पूजा का संकल्प करे .
अब आप सबसे पहले भगवान गणेश जी की पूजा करे. उसके बाद श्री वरूण देव, षोडशमातृका ,नवग्रह,श्री विष्णु देव की ,भगवान श्री राम की ,भगवान हनुमान जी ,पितृ देवताओ की,प्रधान कलश देवता की पूजा करे
चुंकि भगवान शंकर की पूजा के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है. अत: भगवान भोले नाथ की भी पूजा भी की जाती है.
उसके बाद देवी के प्रथम स्वरुप माँ शैलपुत्री का आवाहन करे माँ शैलपुत्री की पंचोपचार , षोडश उपचार पूजा करे .
माता की प्रतिमा को एक ताम्र पात्र में गुलाब की पत्तियों के ऊपर स्थापित करे |
माता की प्रतिमा को केसर मिश्रित कच्चे दूध से ,पंचामृत से ,गंगाजल से ,अनार के फल के रस से ,सुगन्धित इत्र के जल से ,गुलाब जल से ,केवड़ाजल से स्नान करवाए |
अभिषेक के पश्चात तत्पश्चात माता को लाल वस्त्र पहनाएं इसके बाद माता को फूल, माला चढ़ाएं, माता को सिन्दूर, अन्य श्रृंगार की वस्तुएं भी अर्पित करनी चाहिए।
गौघृत का दीप करें, चंदन की अगरबत्ती जलाएं, अबीर चढ़ाएं .
पूजन के पश्चात माँ दुर्गा की अपने परिवार सहित आरती करे,पुष्पांजलि के लिए हाथ में पुष्प लेकर माँ मंत्रो का जाप करे -
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।
ऊँ जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी ।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
इन मंत्रो के उच्चारण के साथ पुष्पो को माता रानी को अर्पण कर दे और अंत मे पूजा मे अनजाने मे हुई कोई ग़लती के लिए क्षमा प्रार्थना करे और उनसे शुभ आशीर्वाद प्राप्त करे ।
पूरे नौ दिन तक माँ दुर्गा की साधना करे.
मन्त्र जाप करे
प्रतिदिन श्री दुर्गा सप्तशती का पूर्ण पाठ करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है .
संध्याकाळ मे माता रानी को भोग लगा कर आरती करे ।
नवरात्र में मां दुर्गा के साथ-साथ भगवान श्रीराम व हनुमान की अराधना भी फलदायी बताई गई है.
सुंदरकाण्ड, रामचरित मानस और अखण्ड रामायण से साधक को लाभ होता है.
शत्रु बाधा दूर होती है. मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.
नवरात्रों का व्रत करने वाले उपवासक को दिन में केवल एक बार सात्विक भोजन करना चाहिए.
मांस, मदिरा का त्याग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नवरात्रों में बाल कटवाना, नाखून काटना आदि कार्य भी नहीं करने चाहिए.
ब्रह्मचार्य का पूर्णत: पालन करना चाहिए।
नवरात्र के दिनों मे प्रतिदिन नैवेद्य, चना, हलवा, खीर आदि से भोग लगाकर कन्या तथा छोटे बच्चों को भोजन कराना चाहिए।
नवरात्रि के दौरान कुमारी कन्याओं को भोजन कराने की भी परंपरा है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है।